Saturday, 26 November 2016

प्राचीन इतिहास (prachin etihas)

        भाग 1

  मित्रो, ये नयी सीरीज हम शुरु कर रहे हैं जिसमें हम सिर्फ 101 तथ्यों मेंं प्रत्येक विषय के वे तथ्य प्रकाशित करेंगे जो सबसे अधिक प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गये हैं और इन्हे पढकर आप बहुत तेजी से अपना रिवीजन कर सकते हैंजिस समय के मनुष्यों के जीवन की जानकारी का कोई लिखित साक्ष्य नहीं मिलता उसे प्राक् इतिहास या प्रागैतिहास कहा जाता है प्राप्त अवशेषों से ही हम उस काल के जीवन को जानते है इस समय उपलब्ध प्रमाण उनके औजार है जो प्राय: पत्थरों से निर्मित है

रुद्रदामन के जूनागढ अभिलेख से पता चलता है कि उसने संस्कृत भाषा को संरक्षण प्रदान कियाकुजुल कडफिसेस ने भारत में ताँबे का सिक्का चलवाया अजंता की गुफाओं के चित्र प्रथम शताब्दी ई.पू. से लेकर सातवी शताब्दी तक है इनमें गुप्त कालीन अत्युत्कृष्ट है बाघ की गुफाओं के चित्र गुप्तकालीन हैजातक ग्रंथों में बुध्द तथा बोधिसत्वों के जीवन की चर्चा है कथावस्तु में बुध्द के जीवन से सम्बंधित कथानकों का विवरण मिलता है भारत की मूलभूत एकता के लिए भारतवर्ष नाम सर्वप्रथम पाणनी के अष्टाध्यायी से आया हैनव पाषाणकाल में आग तथा पहिए का आविष्कार हुआ इस समय की प्रमुख विशेषता खाध उत्पादन, पशुओं के उपयोग की जानकारी तथा स्थिर ग्राम्य जीवन का विकास थाआदमगढ की गुफाओ से गुफा चित्रकारी का प्रमाण मिला है जिनमें आखोट नृत्य तथा युध्द गतिविधियों को चित्रित किया गया हैहोमोसैपियंस का आविर्भाव तीस चालीस हजार वर्ष पूर्व माना जाता है उस समय मनुष्य जंगल में निवास करता था उत्तर प्रदेश के बेलन घाटी में स्थित कोल्डीहवा नामक स्थान से चावल की कृषि का साक्ष्य मिला जो 7000-6000 ई.पू. का हैमनुष्य ने सबसे पहले जिस धातु का उपयोग किया वह ताँबा थी ताँबे से जिस युग में औजार अथवा हथियार बनाए जाने लगे उसे ताम्र पाषाणकाल कहा जाता है

मानव द्वारा बनाया जाने वाला प्रथम औजार कुल्हाडी थामेहरगढ प्रसिध्द नव पाषाण कालीन स्थल है जहाँ 7000 ई. पू. में कृषि कार्य का साक्ष्य प्राप्त हुआ है यहाँ से गेहूँ तथा जौ की खेती के प्रमाण मिले हैरेडियो कार्बन  सी-14 जैसी नवीन विश्लेषण पध्दति के  द्वारा हडप्पा सभ्यता का सर्वमान्यकाल2350 ई. पू. से 1750 ई. पू. को माना जाता है उत्खनन से प्राप्त बहुसंख्यक नारी मूर्ति के कारण अनुमान लगाया जाता है कि समाज मातृ सत्तात्मक था हडप्पा से मातृ देवी की प्रतिमा मिली है मोहनजोदडों से नृत्यांगना की एक कास्य आकृति प्राप्त हुई हैमछली पकडना तथा शिकार करना हडप्पा सभ्यता के निवासियों का दैनिक क्रिया-कलाप था शतरंज जैसा खेल यहाँ प्रचलित था यहाँ के निवासी आमोद प्रमोद प्रेमी थे कूबड वाला बैल तथा श्रृंगयुक्त पशु पवित्र पशु थे गाय का अंकन मुहरों पर नहीं दिखता, किंतु उसकी पवित्रता भी निविवाद रुप से रही होगी   वैदिक मंत्रों तथा सहिंताओं की गध टीकाओं को ब्राह्मण कहा जाता था पुरातन ब्राह्मण में ऐतरेय,शतपथ,पंचविश,तैतरीय आदि बहुत महत्वपूर्ण हैउपनिषदों में ‘बृहदारण्यक’ तथा ‘छांदोन्य’ सर्वाधिक प्रसिध्द हैयुगांतर में वैदिक अध्ययन के लिए 6 विधाओं की शाखाओं का जन्म हुआ जिन्हें ‘वेदांग’ कहते हैवेदांग का शाब्दिक अर्थ है वेदों का अंग तथापि इस साहित्य के पौरुषेय होने के कारण श्रुति साहित्य से पृथक ही गिना जाता है वैदिक शाखाओ के अंतर्गत ही पृथक प्रथक वर्ग स्थापित हुआ और इन्हीं वर्गो के पाठय  ग्रंथों के रुप में सूत्रों का निर्माण हुआ वैदिक साहित्य के उत्तर मे रामायण और महाभारत नामक दो महाकाव्य साहित्य का प्रणयन हुआ सती प्रथा का सर्वप्रथम साहित्य साक्ष्य ‘माहाभारत’ में मिलता हैप्राचीनकाल में नालंदा, वल्लभी व विक्रमशिला शिक्षा के प्रमुख केंद्र थे 

              भाग 2

प्राचीन काल में चार वेद, छ: वेदांग, चौदह विधायें, अठारह शिल्प, 64 कलाओं की शिक्षा दी जाती थीनालंदा की स्थापना कुमार गुप्त प्रथम (शकादित्य), वल्लभी की भट्टार्क तथा विक्रमशिला की स्थापना धर्मपाल ने की महावीर को 12 वर्ष की कठिन तपस्या के पश्चात ऋजुपालिका नदी के तट पर सालवृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत वीर्य, अनंत सुख को अनंत चतुष्टय कहा जाता हैजैन धर्म सांख्य दर्शन के सर्वाधिक निकट हैमहावीर के 11 प्रमुख शिष्यों को गंध्र्व कहा जाता है पार्शवनाथ के अनुयायियों को निर्ग्रंथ कहा जाता हैगौतम बुध्द ने 29वें वर्ष गृह त्याग किया जिसे ‘महाभिनिष्क्रमण’ कहा गयामहात्मा बुध्द ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया गया जिसे ‘धर्मचक्रप्रवर्तन’ के नाम से जाना जाता है 

बौध्द धर्म के प्रमुख सिध्दांत है – अनात्मवाद, प्रतीत्य समुत्पाद, क्षणभंगवादभिक्षु संघ में प्रवेश करने वाली प्रथमा महिला प्रजापति गौतमी थींदु:ख, दु:ख समुदाय, दु:ख निरोध, दु:ख निरोध प्रतिपदा को चार आर्य सत्य कहते हैमेगस्थनीज ने कृष्ण को हेराक्लीज तथा शिव को डायोनिसियस कहा गयाछ्ठी शती में षोडस महाजनपद का उल्लेख ‘अंगुत्तरनिकाय’ तथा ‘भगवतीसूत्र’ में मिलता हैमौर्य साम्रज्य का शासनकाल 321 ई0 पू0 से 184 ई0 पू0 तक रहामौर्य वंश का संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य था, 322 ई0 पू0 में चन्द्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य की सहायता से नन्द वंश के अंतिम शासक धनानंन्द की हत्या करके मौर्य साम्राज्य की स्थापना कीयूनानी साहित्य में चन्द्र्गुप्त मौर्य को सैंड्रोकोट्स कहा गया है305 ई0 पू0 में चन्द्रगुप्त का संघर्ष सिकंदर के सेनापति सेल्युकस निकोटर से हुई जिसमें चंद्रगुप्त की विजय हुईचंद्रगुप्त के शासनकाल में मेगस्थनीज दरबार में आया और पाँच वर्षो तक पाटिलपुत्र रहामेगस्थनीज ने इन्डिका की रचना की जिसमें मौर्य साम्राज्य की दशा का वर्णन हैचंद्रगुप्त मौर्य ने सौराष्ट्र,मालवा,अवन्ति के साथ सुदूर साउथ भारत को मगध राज्य में मिलाया

चंद्रगुप्त ने बाद में जैन धर्म स्वीकार किया व भद्रबाहु से जैन धर्म को स्वीकार कियाचंद्रगुप्त मौर्य ने ई0 पू0 300 में अनशन व्रत करके कर्नाटक के श्रवणगोला में अपने शरीर का त्याग किया300 ई0 पू0 में बिंदुसार मगध की गद्दी पर बैठा, यूनानी इतिहासकारों ने बिंदुसार को अपनी रचनाओं में अमित्रोकेट्स की संज्ञा दी है जिसका अर्थ होता है शत्रु का विनाशक, वायु पुराण में बिंदुसार को भद्रसार तथा जैन ग्रंथों में सिंहसेन कहा गया हैबिंदुसार के शासन काल में तक्षशिला में दो विद्रोह हुए पहले विद्रोह को उसके पुत्र सुसीम ने दबाया व दूसरे को अशोक ने दबाया

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